Saturday 9 November 2013

मेरी नयी कविता......"जीने की कला"




"जीने की कला"

कवि हूँ...!!
इसलिए लोग अपने काम का नहीं समझते...
आशिक हूँ...!!
बताया जब
तो कहा दुनियावी मसीहाओं ने कि
एक तो करेला
ऊपर से नीम चढ़ा...
दिलजला भी हूँ...!!
कहने पर लोगों ने
कनखियों से मुसकुराना भी शुरू कर दिया...
और जब बताया कि
नौकरी भी नहीं है कोई पास में...
दूर तलक उम्मीद भी नहीं कोई...
लोगो ने मुंह फेरना
दूर से ही शुरू कर दिया...
मेरे अंदर का इंसान
इन तमाम आग्रहों-पूर्वाग्रहों-- जोकि आधुनिक जीवन का शिष्टाचार है--
के बीच
हैरान परेशान
अपनी इंसानियत
अपनी हूबहू पहचान
अभी तक खोज रहा है...
बावजूद इस खतरे के
कि कुछ पास हो ना हो
इंसानियत का होना पास में
एक गैर ज़मानती अपराध है...
आईये
निरपराध जीवन जीने का प्रयास करें...